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भगवान शिव को हिंदू संस्कृति में सर्वोच्च भगवान माना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, वह त्रिमूर्ति अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से एक हैं। भक्तों का मानना है कि कोई भी भगवान शिव को आसानी से प्रसन्न कर सकता है क्योंकि वह उन लोगों को आशीर्वाद देता है जो भक्ति और शुद्ध इरादे से उसकी पूजा करते हैं। उन्हें बुरे विचारों, भौतिक इच्छाओं, वासना और नकारात्मकता का नाश करने वाला भी कहा जाता है। भक्त अक्सर भांग, धतूरा, चंदन और गंगाजल चढ़ाकर उसकी पूजा करते हैं। भगवान शिव को ये चीजें अर्पित करते समय शिव के मंत्र का पाठ करने से अनुष्ठान के अनुसार देवता की पूजा करने में मदद मिल सकती है।
भगवान शिव की पूजा करने का दूसरा तरीका शिव चालीसा का पाठ करना है। जो लोग नहीं जानते, उनके लिए चालीसा एक विशेष ईश्वर को समर्पित भजन है। शिव चालीसा के बोल जानने के लिए, लेख को और पढ़ने के लिए नीचे स्क्रॉल करें।
।।दोहा।।
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
|| दोहा ||
Jai Ganesh Girija Suvan, Mangal Mul Sujan
Kahat Ayodhya Das, Tum Dey Abhaya Varadan ||
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत संतन प्रतिपाला॥
भाल चंद्रमा सोहत नीके। कानन कुंडल नागफनी के॥
जय गिरिजा पति दिन दयाला | सदा करत संतन प्रतिपाल ||
Bhala Chandrama Sohat Nike | Kanan Kundal Nagaphani Ke ||
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
Anga Gaur Shira Ganga Bahaye | Mundamala Tan Chhara Lagaye ||
Vastra Khala Baghambar Sohain | Chhavi Ko Dekha Naga Muni Mohain ||
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
Maina Matu Ki Havai Dulari | Vama Anga Sohat Chhavi Nyari ||
कारा त्रिशूल सोहत छवी भारि | करत सदा शतरुण छ्यकरी ||
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
Nandi Ganesh Sohain Tahan Kaise | Sagar Madhya Kamal Hain Jaise ||
Kartik Shyam Aur Gana rauo | Ya Chhavi Ko Kahi Jata Na Kauo ||
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
Devan Jabahi Jaya Pukara | Tabahi Dukha Prabhu Apa Nivara ||
Kiya Upadrav Tarak Bhari | Devan Sab Mili Tumahi Juhari ||
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
Turata Shadanana Apa Pathayau | Luv nimesh Mahi Mari Girayau ||
Apa Jalandhar Asura Sanhara | Suyash Tumhara Vidit Sansara ||
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
Tripurasur Sana Yudha Machai | Sabhi Kripakar Lina Bachai ||
Kiya Tapahin Bhagiratha Bhari | Purahi Pratigya Tasu Purari ||
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
डारपा चोद गंगा थबब आयी | सेवक अस्तुति करत सदाहिं ||
वेदा नाम महिमा तव गाई | अकथ आनंदी बेद नहिं पाई ||
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
प्रगति उदधि मन्तन ते ज्वाला | जरा सुर-सुर भये बिहाला ||
Mahadev thab Kari Sahayee | Nilakantha Tab Nam Kahai ||
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
Pujan Ramchandra Jab Kinha | Jiti Ke Lanka Vibhishan Dinhi ||
Sahas Kamal Men Ho Rahe Dhari | Kinha Pariksha Tabahin Purari ||
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
Ek Kamal Prabhu Rakheu goyee | Kushal-Nain Pujan Chahain Soi ||
कथिन भक्ति देहि प्रभु शंकर | भये प्रसन्ना दीये-इच्छित वार ||
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
जय जय जय अनंत अविनाशी | करत कृपा सब घाट वासी ||
दुःख सकाल नित मोहिं सतावै | भ्रामत राहे मन चैन न आवै ||
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
Trahi-Trahi Main Nath Pukaro | Yahi Avasar Mohi Ana Ubaro ||
Lai Trishul Shatrun Ko Maro | Sankat Se Mohin Ana Ubaro ||
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥
Mata Pita Bhrata Sab Hoi | Sankat Men Puchhat Nahin Koi ||
Swami Ek Hai Asha Tumhari | Ai Harahu Ab Sankat Bhari ||
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
Dhan Nirdhan Ko Deta Sadahin | Arat jan ko peer mitaee ||
Astuti Kehi Vidhi Karai Tumhari | Shambhunath ab tek tumhari ||
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥
Shankar Ho Sankat Ke Nashan | Vighna Vinashan Mangal Karan ||
योगी यति मुनि ध्यान लगावन | शरद नारद शीश नवावें ||
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करें मन लाई। ता पार होत है शंभु सहाई॥
Namo Namo Jai Namah Shivaya | Sura Brahmadik Par Na Paya ||
Jo Yah Patha Karai Man Lai | To kon Hota Hai Shambhu Sahai ||
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
रैनियन जो कोई हो आदिकारी | पाठ करै सो पावन हरि ||
पुतरा-हिन इछछा कर कोइ | निश्चय शिव प्रसाद तेहिं होई ||
पंडित त्रयोदशी लाओ। घर का काम सावधानी से करना चाहिए।
त्रयोदशी व्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
Pandit Trayodashi Ko Lavai | Dhyan-Purvak Homa Karavai ||
Trayodashi Vrat Kare Hamesha | Tan Nahin Take Rahe Kalesha
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म का पाप नहीं होना चाहिए। शिवपुर में शरण लें।
धुप दीपा नैवेद्य चढावे | शंकरा संमुक्ता पाथा सुनावे ||
जनमा जनमा के पापा नासेवे | अन्ता धामा शिवपुरा पुरुष पावे ||
॥दोहा॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
|| दोहा ||
नित्य नेमा करि प्रतिहारी | पाठ करौ चालीसा ||
Tum Meri Man Kamana | Purna Karahu Jagadisha ||